राफेल बोंजू! राफेल बोंस्वा!
ये वो उपहार है, जो भारत सरकार ने विजय दशमी के दिन वायुसेना को दिया था। न तो इससे बेहतर कोई उपहार हो सकता था। और न ही इस आयोजन का इससे बेहतर कोई दिन।
मग़र इसकी उतराई अगले बरस जुलाई के आख़री दिनों में हो सकी है!
ध्यातव्य हो कि सन् बत्तीस में, विजय दशमी ही के दिन यानी कि आठ अक्टूबर को भारतीय वायुसेना की स्थापना हुई थी। कैसा विताना नियति ने रचा है कि जिस रोज़ राफेल का वायुसेना में सम्मिलित होना हुआ, उसी रोज़ विजय दशमी भी है और उसी रोज़ एयरफोर्स डे भी।
सन् दो हज़ार उन्नीस की विजय दशमी को राफेल भारत का हुआ था। और उसके पूजन का अवसर, पहले पहल उसे भारतीय आसमान में उड़ाने का अवसर एयर मार्शल रघुनाथ नाम्बियार को मिला था।
यों तो “राफेल” फाइटर जेट को तिरंगे तले लाने के प्रयास सरल नहीं थे। किन्तु इस जेट की निर्मिति, इसे दुनिया में लाने के मार्सेल डासो के प्रयास अपेक्षाकृत अधिक कठिन थे।
भले इस जादुई जेट को सन् दो हज़ार एक में फ्रेंच सेना ने अपनाया। किन्तु ये सन् छियासी में हुई अपनी निर्मिति के दिन से ही शानदार था। इक्कीसवीं सदी की सोच तक अपनी पैठ बनाने वाला जेट, राफेल!
मार्सेल डासो, द फ़ादर ऑफ़ राफेल। उन्हें समग्र विश्व की फाइटर जेट्ज़ क्रांति का जनक कहा जाए तो भी अतिशयोक्ति न होगी। इस इंसान को अपनी रिसर्च में राफेल तक पहुंचने में पांच दशक से ज्यादह लगा।
और जिस दिन उसने सुना कि “यू मेड ओमनीरोल”, वो इंसान इस दुनिया से चल बसा। मानो, ये वाक्य सुनने के लिए ही उसकी साँसे चल रही थीं।
उनकी आत्मा के लिए सुखद ये था कि जिस लक्ष्य की पूर्ति हेतु वे जमीं पर आए थे, उसे पूरा कर के जा रहे थे।
इस कहानी की शुरुआत होती है, द असॉल्ट से!
द असॉल्ट : अगरचे ये नाम किसी बॉलीवुड फ़िल्म के पीछे सफिक्स की भांति लगाया जाता, तो उस मूवी का नाम “आक्रमण” होता। पूरा नाम कुछ यूं बनता : “आक्रमण - द असॉल्ट”। किन्तु यहाँ कोई फ़िल्म नहीं, रक्षा उपकरणों को बनाने वाली एक उत्पादक कंपनी के निर्माण की बात थी!
ये बीसवीं सदी के पूर्वार्ध का फ़्रांस है, ऑनर लीजन का फ़्रांस!
इसी फ़्रांस में मार्सेल ब्लॉच नामक एक जुनूनी नागरिक रहता है। उसके जीवन का ध्येय था : “अटैक इज़ द बेस्ट डिफेन्स”। अर्थात् आक्रमण ही रक्षा का श्रेष्ठ उपाय है!
बालिग़ होने पर मार्सेल ने अपना नाम में “ब्लॉच” हटा कर, “द असॉल्ट” जोड लिया। अब वे हो गए, मार्सेल द असॉल्ट। किन्तु फ़्रेंच उच्चारण पद्धतियों के कारण उनका नाम “मार्सेल डासो” पढ़ा जाने लगा।
(फ़्रेंच भाषा में शब्द के आखिर का “टी” नहीं उचारा जाता है। किन्तु “एल” का लोप किस तरह हुआ, ये फ्रेंच का व्याकरणिक मसला हो सकता है। इसकी चर्चा फिर कभी!)
उसी जुनूनी आदमी "मार्सेल डासो" ने, सन् उन्नीस सौ उनतीस में “डासो एविएशन” की स्थापना की। जिसे समूची दुनिया “डसॉल्ट एविएशन” या “द असॉल्ट एविएशन” के नाम से जानती है।
डासो को “पहला राफेल” बनाने में करीब दो दशक लगे। मगर वो “राफेल” नहीं था। उसका नाम “हरीकेन” पुकारा गया, यानी कि चक्रवात!
सन् उनचास से लेकर अब तलक, कुल तीन सौ बासठ “हरीकेन” बनाए गए। इस बरस सात दशक पुराने होने जा रहे “हरीकेन”, इनदिनों फ्रेंच सेना से बाहर किये जा चुके हैं। आजकल “हरीकेन”अपने पंखों पर फ्रेंच एविएशन का शानदार इतिहास उठाये फ्रांसीसी एविएशन स्कूलों में खड़े हैं!
किन्तु मार्सेल डासो इससे संतुष्ट नहीं थे। “हरिकेन” को आए दो बरस ही हुए थे कि डासो ने विमानों की “मिस्ट्री” शृङ्खला लांच कर दी। सन् इक्यावन में आए “मिस्ट्री” के कुल एक सौ छियासठ जेट निर्माण किए गए। आजकल ये भी एविएशन स्कूल्स की धरोहर हैं।
“मिस्ट्री सेकण्ड” और “मिस्ट्री थर्ड”, दोनों ही अपने कई कई प्रयासों में आकाश की ऊंचाइयों के बजाए जमीं की धूल पर ही नज़र आए। सो, इनके एक एक प्रोटोटाइप के साथ ही ये हमेशा के लिए फ्रेम से बाहर हो गए!
अब, सन् बावन में आया “मिस्ट्री फोर्थ”!
बहरहाल, आजकल ये भी एविएशन स्कूलों की शान है। मगर इसने एक शानदार पारी खेली। कुल चार सौ ग्यारह “मिस्ट्री फोर्थ” बनाए गए, जिन्होंने फ्रांसीसी सेना और फ़्रांस के मित्र राष्ट्रों की वायु सेनाओं में स्थान पाया।
सन् छप्पन में डासो कुछ ऐसा लाए जो “मिस्ट्री” नहीं था। इस शृङ्खला का नाम “इटेंडर्ड” निश्चित हुआ। किन्तु “इटेंडर्ड” अपने शुरुआती टेस्ट भी पास न कर सका। “इटेंडर्ड सेकण्ड” का भी मात्र एक प्रोटोटाइप बना, और वह भी आशाओं पर खरा नहीं उतरा!
किन्तु मार्सेल डासो हार मानने वालों में से नहीं थे। वे “इटेंडर्ड थर्ड” लेकर आए। किन्तु उसका हाल भी फर्स्ट जैसा हुआ। फिर “इटेंडर्ड फोर्थ” आया। उसका प्रोटोटाइप फ्रेंच सेना ने पसंद किया। कुल नब्बे “इटेंडर्ड फोर्थ” जेट ही आसमान में उतरे थे कि मार्सेल डासो ने “इटेंडर्ड फिफ्थ” के लांच की घोषणा कर दी!
किन्तु उसका हश्र भी फर्स्ट और थर्ड जैसा हुआ. बिना एक भी प्रोटोटाइप बने, वे शुरूआती टेस्ट भी पास न कर सके। फाइनली, “इटेंडर्ड सिक्स्थ” आया। और मात्र दो प्रोटोटाइप के साथ जमीं पर औंधे मुंह गिरा। इस “इटेंडर्ड” श्रंखला ने डासो और मार्सेल दोनों की बहुत किरकिरी करवा दी थी।
किन्तु मार्सेल डासो ने इसे संभाल लिया!
सन् छप्पन में वे “मिराज” लेकर आए। ये “मिराज थर्ड” था। जाहिर है, “मिराज” के फर्स्ट और सेकण्ड तो बिना किसी प्रोटोटाइप के ही दौड़ से बाहर हो चुके थे। किन्तु “मिराज थर्ड” ने फाइटर जेट की दुनिया में क्रांति कर दी!
दो हज़ार सोलह में अपने छः दशक पूरे कर चुका विमान, पूरी दुनिया में कुल एक हज़ार चार सौ बाइस संख्या में मौजूद है। और आज भी सेवारत है। दुनिया को ऐसा लगता था कि “इटेंडर्ड” की किरकिरी को "मिराज" ने सुधार दिया। किन्तु मार्सेल डासो जानते थे कि “इटेंडर्ड” न होता तो “मिराज” को इतना बड़ा प्रायोगिक आधार न मिल पाता।
वो आदमी इतना बड़ा जुनूनी था कि साठ के दशक में अपने खाली समय को “इटेंडर्ड” जेट्स के साथ बिताता था!
इसी बीच सन् बासठ में डासो की “बेल्ज़क” शृङ्खला के पांचवें प्रयास ने प्रोटोटाइप टेस्ट पास किया। किन्तु फ्रेंच वायुसेना की उँगलियों में बसे “मिराज थर्ड” के सामने “बेल्ज़क फाइव” नहीं टिक सका। और “बेल्ज़क” बंद हो गए! एकमात्र मौजूद “बेल्ज़क फाइव”, आजकल किसी एविएशन स्कूल के किसी बरामदे में खड़ा होगा।
इधर “मिराज” में भी संभावित सुधारों की कवायद चल पड़ी!
थर्ड के बाद फोर्थ, फिफ्थ, सिक्स्थ और सेवन तक के “मिराज” मॉडल्स अपना पहला टेस्ट भी न पास कर सके। “मिराज एड्थ” के कुल दो प्रोटोटाइप भी बने, मगर वो “हार्ड टू हैंडल” सिद्ध हुआ। अतः असमय बंद हो गया।
सन् छियासठ के शुरूआत में “मिराज ऍफ़-वन” आये। शानदार मिराज, जिसने अपने ही मॉडल “मिराज थर्ड” को आउटप्लेड कर दिया। समूचे विश्व में कुल सात सौ बीस संख्या के साथ आज भी कार्यरत है!
इसी बरस के आखिर में, “मिराज ऍफ़-टू” आ गया। एक प्रोटोटाइप से ज्यादा बनाया जाए, ऐसी खूबियां उसमें नहीं थीं। अतः चलन में न आ सका।
सन् सरसठ में “मिराज जी” भी सिर्फ दो प्रोटोटाइप के साथ असफलताओं का एक और प्रतिमान बन गया। किन्तु इसी साल के आखिर में आया “मिराज फाइव एंड फिफ्टी”, आज भी संख्या में पांच सौ बयासी होकर कार्यरत है!
फ़्रांस का लड़ाकू विमानन कार्यक्रम “मिराज थर्ड”, “मिराज फाइव एंड फिफ्टी” और “मिराज ऍफ़-वन” जैसे जेट्स के साथ लगभग संतृप्त हो चुका था। कुलमिला कर लब्बोलुआब यह था कि मार्सेल डासो की “मिराज” श्रंखला ही उनके जीवन भर के श्रम का परिणाम रही।
-- किन्तु ऐसा संसार को लगता था! मार्सेल डासो खुद ऐसा नहीं मानते थे। वे अब भी अपना खाली समय “इटेंडर्ड” जेट्स के साथ बिता रहे थे।
और सत्तर के दशक के शुरूआती चार साल बीतने के बाद, एक दिन उन्होंने फ़्रांस की ही एक और एविएशन उत्पादक “ब्रेग्वेट” के साथ मिलकर “इटेंडर्ड” लांच कर दिया। “इटेंडर्ड” के खराब इतिहास और “मिराज” की सफलताओं ने इस लांच को पूरी तरह दबा दिया था। जेट्स इतने शानदार बने थे, ये फ्रेंच सेना में आज भी कार्यरत हैं।
किन्तु फिर भी, इनकी वर्तमान संख्या पिचासी ही है, चूंकि उस समय पिचासी ही बनाए गए थे। “इटेंडर्ड” के ख़राब इतिहास के कारण इस शृङ्खला को मिलिटरी ऑर्डर्स ही नहीं मिले।
“मिराज” का अंतिम सफल विकास “मिराज 2000” के रूप में हुआ। कुल छह सौ एक संख्या के साथ ये कई देशों की वायुसेनाओं में कार्यरत हैं। इसी बरस कश्मीर में हुए पुलवामा हमले के पश्चात्, पाकिस्तान पर की गई एयर-स्ट्राइक इन्हीं जेट्स द्वारा की गई थी।
“मिराज” शृङ्खला का अंत कुछ इस तरह हुआ कि “मिराज 4000” का एकमात्र प्रोटोटाइप फेल होने के कारण “मार्सेल डासो” ने इसका उत्पादन ही बंद करवा दिया। अब भी, संसार यही मानता था कि “मार्सेल डासो” का सबसे शानदार काम “मिराज” ही है!
मगर "मार्सेल" को "ओमनीरोल" भी बनाने थे। यानी कि वायु में ही दुश्मन के प्रहारों से बचने के लिए “मल्टीरोल” कर सकने में सक्षम होने के साथ, जेट्स द्वारा निर्वाह किए जाने योग्य हर तरह के रोल में फिट हो।
और उनका ये सपना सन् छियासी में पूरा हुआ!
जब मार्सेल डासो ने सुना कि जेट को “ओमनीरोल” कराने का सपना पूरा हुआ, लंबी बीमारी से जूझते हुए उस कमज़ोर शरीर से उस दिव्य आत्मा का पारगमन हो गया।
किन्तु “ओमनीरोल” विश्व को मिल चुका था!
इस नवेले जेट का नाम फ्रेंच सेना ने “राफेल” निश्चित किया था। ठीक उसी तरह, भारतीय वायुसेना भी इसका नया नाम निश्चित करेगी। जैसे कि पूर्व में भी भारतीय वायुसेना ने “मिराज” को “वज्र”, “मिग-ट्वेंटीनाइन” को “बाज” और “जैगुआर” को “शमशेर” जैसे नामों के साथ अपनाया है।
देखें कि “राफेल” को कौनसा नाम मिलता है! फिलहाल यही कि राफेल बोंजू, राफेल बोंस्वा, वेलकम राफेल इन आर इंडिया!
Written By : Yogi Anurag
SPEECH LESS DEAR ANURAG..
ReplyDeleteKEEP IT UP...
Thank you. :)
Delete💓💓💓
ReplyDelete<3 <3 <3
Delete👌👌👌🙏
ReplyDeleteBrahman Devta : Thanks. :)
DeleteBrahmanuvach.blogspot.com
ReplyDeleteBrahman Devta : I will watch your blog for sure. :)
Deleteशानदार राफेल, 🙏🙏🙏🙏
ReplyDeleteअमरीश जी : बहुत शुक्रिया। :)
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