अयोध्या जी-२


"अयोध्या पूरब का सबसे प्रसिद्ध शहर है!"

-- ये पङ्क्ति मेरी नहीं है। और ये पङ्क्ति मेरी ही है।

ये मेरी इसलिए नहीं है, चूँकि ये मैंने "प्लिनी" के उत्तर में लिखी।

और ये पङ्क्ति मेरी इसलिए है, चूँकि ये मैंने लिखी!

"प्लिनी", एक ऐसा नाम जिससे प्रशंसा बतौर अक्सर मेरा सामना होता है। अक्सर मेरे गुरुजन, मेरे यार लोग मुझे मॉडर्न "प्लिनी" के संबोधन से नवाज़ते हैं।

ये मेरे लिए एक बड़ी बात है।

अक्सर सुनने को मिलता है, अनुराग, एक दिन तुम पूरब के "प्लिनी" बनोगे। ये बातें मुझपर नशा तारी करती हैं!

प्रशंसाएं मुझे असहज करती हैं, ठीक उसी तरह, जैसे हर एक शर्मीले लड़के को करती होंगी!

##

"प्लिनी", एक ऐसा "भूगोलविद्" जिसे "अनुराग" ने तब पढ़ना चाहा, जब वो पांच फीट का था और उसकी किताबों का मूल्य छः फीट पर था।

एक दो किताब होती तो मैं उचककर कोशिश भी करता, किन्तु किताबें पूरी सैंतीस थीं।

उस शृंखला का नाम है : "द नेचुरल हिस्ट्री"।

केवल एक ही शृंखला में सैंतीस किताबें!

बहरहाल, बहरकैफ़।

बिना खरीदे भी पुस्तकें पढ़ी ही जाती हैं। "द नेचुरल हिस्ट्री" भी पढ़ी गई। उसके पांचवें खण्ड के पन्द्रहवें चैप्टर में लिखी थी वो पङ्क्ति, कुछ इस तरह :

"जेरूसलम पूरब का सबसे प्रसिद्ध शहर है।"

जब मैंने ये पङ्क्ति पढ़ी थी, मैं एक बार भी "जेरूसलम" नहीं गया था। हालाँकि, मैं "अयोध्या" भी नहीं गया था।

किन्तु मैंने अपने नोट्स में इस पङ्क्ति में दो "करेक्शन" किए। मैंने लिखा :

"जेरूसलम मध्य-पूर्व का सबसे प्रसिद्ध शहर है।"

और दूसरी पङ्क्ति थी :

"अयोध्या पूरब का सबसे प्रसिद्ध शहर है।"

पांचवीं किताब तक, मुझे लगता था कि रोम का "प्लिनी" पूरब में ज्यादा भीतर तक न आ सका होगा। उसके लिए मध्य-पूर्व ही पूर्णतया पूरब रहा होगा।

लेकिन नहीं!

जब छठवीं किताब उठाई तो उसमें भारत बिखरा हुआ था। ऐसा विशद वर्णन कि "प्लिनी" में मुझे कालिदास और वेदव्यास दृष्टिगत होते हैं।

ख़ैर, "प्लिनी" चाहे जो कहें, पूरब में मौजूद सनातन धर्म के लोगों की सङ्ख्या, "अयोध्या" को ही सबसे प्रसिद्ध बनाती है।

अस्तु।


Written By : Yogi Anurag
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