श्रीरामजन्मकाल


विषय है, श्रीराम का जन्म कब हुआ?

उत्तर है, त्रेता युग के उत्तरार्ध में चैत्र शुक्ल नवमी को.

ये तो सबको ज्ञात है. किन्तु सन् कौनसा था? युगाब्द क्या था? क्या हम श्रीराम का एक्चुअल डेट ऑफ़ बर्थ जान सकते हैं?

तो इसका सीधा सीधा, एक पङ्क्ति का उत्तर है : "नहीं जान सकते."

ऐसा क्यों भला? मर्यादा पुरुषोत्तम थे, मानवीय रूप में वे जन्मे थे, उनका जन्म समकालीनों ने अपने नेत्रों से देखा था. कहीं किसी ने कोई उल्लेख तो अवश्य किया होगा.

इस विषय में महर्षि वाल्मीकि सर्वाधिक प्रामाणिक हैं. वे ही श्रीराम के समकालीन थे. उन्होंने ही "रामायण" नामक ग्रन्थ में इस दिव्य इतिहास को लिखा है.

महर्षि ने कुछ बिंदु इस प्रकार दिये हैं :

1) चन्द्रमा और बृहस्पति कर्क राशि में थे.
- मून एंड जुपिटर वॉज़ इन कैंसर.

2) कुल पांच ग्रह अपनी उच्च राशियों में थे.
3) उस प्रहर में पुनर्वसु नक्षत्र था.
4) उस दिन चैत्र शुक्ल नवमी थी.
5) त्रेता युग अपने समापन की ओर था.

मैं इन बिंदुओं के विस्तार में नहीं जाऊँगा. चूँकि ये ज्योतिषीय विषय हैं. इसकी समझ सब पाठकों को नहीं होगी. फिर भी, जो लोग इसका डिस्क्रिप्शन चाहें, टिप्पणियों में देख सकते हैं.

तो ये था एक समय बिन्दु, जिसको आधार बना कर महर्षि ने अगली पीढ़ी को श्रीराम का जन्मकाल सूचित किया.

अब यहाँ एक तर्क आता है, कि महर्षि को "एस्ट्रो ईयर" के बारे में मालूम नहीं था.

आइये, जानें कि ये "एस्ट्रो ईयर" क्या है?

"ईयर" यानी कि बरस, एक अवधि है जिसमें कि पृथ्वी सूर्य का चक्कर लगा लेती है.

एस्ट्रोलॉजी की दो एक सामान ग्रह-स्थिति के मध्य के काल को "एस्ट्रो ईयर" कहा गया है.

सौरमंडल की प्रत्येक प्लेनेटरी पोजीशन अर्थात् ग्रह स्थिति, ठीक एक "एस्ट्रो ईयर" पश्चात् खुद को रिपीट करती है.

एक "एस्ट्रो ईयर" कितने बरस की होती है, इसकी गणना में पर्याप्त श्रम लगेगा. इसकी गणितीय गणनाओं पर एक पृथक् पोस्ट अतिशीघ्र करूँगा.

अक्सर ये तर्क दिया जाता है कि महर्षि को "एस्ट्रो ईयर" के बारे में ज्ञात न था, इसी कारणवश उन्होंने ऐसी रिपीटिंग पोजीशन को दिया.

हालाँकि ऐसा नहीं है. जो व्यक्ति ये तक जानता था कि भविष्य में मेरे लिखे ग्रन्थ में मिलावटें हो जाएंगी. और उसने प्रत्येक हज़ारवें श्लोक को गायत्री मंत्र के अक्षर से आरंभ किया.

यथा, पञ्च हज़ारवां श्लोक गायत्री मंत्र के पांचवें अक्षर से आरंभ है. एंड सो ऑन.

क्या वे "एस्ट्रो ईयर" न जानते होंगे? असंभव है. महर्षि अवश्य "एस्ट्रो ईयर" के बारे में जानते थे. वे जानते थे कि उनके द्वारा उल्लिखित ग्रह-स्थिति बार बार रिपीट होगी.

अतः उन्होंने श्रीराम के कालखंड हेतु एक संकेत और दिया. उन्होंने बताया, श्रीराम के समय विंध्यांचल और हिमालय पर्वत की ऊंचाई सामान थी.

जैसा कि महर्षि जानते थे, हिमालय लगातार बढ़ रहा है.

तो अब, इन दोनों पर्वतों की ऊँचाई की अन्वेषणा करें.

विंध्य की ऊंचाई सातः सौ बावन मीटर है. और हिमालय की आठ हज़ार आठ सौ अड़तालीस मीटर है.

तो अब विचारें कि कब हिमालय 752 मीटर ऊँचा रहा होगा? इसके लिए अव्वल तो हिमालय की वृद्धि दर मालूम हो.

हिमालय की वृद्धि दर है, एक सेमी प्रतिवर्ष. या यूं कहें कि कभी एक सेमी से न के बराबर ज्यादह, तो कभी कम.

इसी प्रकार, एक सौ बरस में एक मीटर बढ़ता है हिमालय.

हिमालय विंध्य पर्वत से 8096 मीटर ऊँचा है. इतनी ऊंचाई होने में आठ लाख नौ हज़ार छः सौ बरस लगेंगे. इसे राउंड फिगर करें तो होता है, आठ लाख दस हज़ार बरस. 

श्रीराम इस धरा पर ग्यारह हज़ार बरस रहे. तो उनके जन्म की गणना करीब करीब आठ लाख पंद्रह से बीस हज़ार बरस तक प्राप्त होगी.

श्रीराम के इस धरा से जाते ही त्रेता का समापन होता है. श्रीराम के जाते ही, द्वापर आरंभ हुआ. ये करीब साढ़े आठ लाख बरस का होता है.

अभी हम लोग कलियुग के आरंभिक काल में हैं. कोई पांच हज़ार बरस बीते हैं. जस दृष्टि से भी श्री राम का आठ लाख वर्ष से अधिक पुरातन होना सटीक लगता है.

किन्तु हम सदैव आठ लाख पंद्रह से बीस हज़ार वर्ष तक ही झूलते रहेंगे. इस बीच श्रीराम जन्म के सटीक समय बिंदु को न जान सकेंगे.

ऐसे क्यों भला?

वस्तुतः हमारे पास ऐसे संसाधन और सूत्र अब नहीं बचे हैं जो हज़ारों हज़ार "एस्ट्रो ईयर्स" पीछे जाकर गणना कर सकें.

चूँकि इन सबकी गणना का सरल मार्ग हमारे शास्त्रों में उल्लिखित था. न केवल इतना बल्के अस्त्र-शस्त्र के निर्माण की विधि भी शास्त्रों में थी.

इन्हीं अस्त्र-शस्त्रों से शास्त्रों की रक्षा होती थी.

जब अहिंसा का काल आया, अस्त्र-शस्त्र समूल विनष्ट हो गए. शास्त्र भी असुरक्षित हुए और नष्ट हो गए. जो शेष रहे, उनमें मिलावटें हैं.

चूँकि इस सब को रोकने वाले अस्त्र-शस्त्र तो पहले ही अहिंसा के नाम पर समाज से दूर कर दिए गए.

अतः, जब तक ये मानव जाति पुनः हज़ारों हज़ार "एस्ट्रो ईयर" पीछे जाकर गणना का मार्ग नहीं ढूंढ लेती. तब तक हम श्रीराम के प्रकट होने का सटीक समय बिन्दु नहीं जान सकेंगे.

सिर्फ इतना ही कह सकेंगे कि उनका जन्म आठ लाख पंद्रह से बीस हज़ार वर्ष के मध्य हुआ. उस समय चल रही "एस्ट्रो ईयर" की वो ग्रह-स्थिति में, जो महर्षि ने रामायण में लिखी.

माह था चैत्र. शुक्ल पक्ष. तिथि नवमी. भये प्रकट कृपाला, दीनदयाला, कौशल्या हितकारी.

इति नमस्कारान्ते।


Written By : Yogi Anurag
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