श्रीराम टेक्स ऑन ड्रैगन


आज से कोई ढ़ाई हज़ार साल पहले एशिया की पीठ पर “चीन” नाम का कैक्टस उग आया! कौन जानता था कि सर्वभक्षी होने के तमाम सीमाएं लांघने वाला ये असभ्य समाज, वर्तमान दुनिया की सबसे बड़ी जनसांख्यकी वाला देश बन जाएगा।

किन्तु अप्रत्याशित रूप से वैसा ही हुआ! आज डेढ़ सौ करोड़ कीड़े लगातार एशिया की पीठ को खाए जा रहे हैं।

ख़ैर! अब इन कीड़ों का इलाज स्वयं “श्रीराम” करेंगे!

-- ऐसा विचार आज हांगकांग से उठा। एक चित्र वायरल हुआ, जिसमें मेघश्याम भगवान् श्रीराम धनुष पर बाण चढ़ाए “ड्रैगन” पर निशाना ले रहे हैं। चित्र के चर्चा में आते ही, इसे ताइवान न्यूज़ एजेंसी ने हाथोंहाथ लिया और “फ़ोटो ऑफ द डे” घोषित कर दिया।

अब ये चित्र पूर्वी विश्व के तमाम चीन-विरोधी स्वरों की एकमत आवाज़ के रूप में उभर रहा है। इसे कहते हैं, किसी राष्ट्र के “पीडब्ल्यूएस” यानी कि “पॉलिटिकल वॉर सिस्टम” (राजनीतिक युद्ध तंत्र) का सिद्ध हो जाना। प्रजा के सौभाग्य से, वो सिद्ध राष्ट्र हमारा अपना देश “भारत” है।

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तो साहिबान, युद्ध से पहले का राजनीतिक युद्ध चीन हार चुका है। मनोवैज्ञानिक युद्ध में उसकी पराजय हो गई है। युद्धक मामलों में संसारभर के माने जाने विशेषज्ञ स्ट्रॉप ह्यूप व पॉसनी ने ठीक इन्हीं सब कार्यों को “पीडब्ल्यूएस” की आत्मा कहा है :

१) शत्रुपक्ष में फूट व आतंक का प्रचार।
२) अल्पसंख्यक समुदाय (नेटिव हांगकांगर्स) का समर्थन और उनके हितार्थ क्रांति को प्रोत्साहन।
३) शत्रुभूमि पर अपनी जासूसी धमक की स्थापना।
४) शत्रुपक्ष की विद्रोही सरकार को आश्रय।
५) विद्रोह, विध्वंस, हस्तक्षेप, नाकाबंदी और बहिष्कार का साम- दाम- दंड- भेद की भांति प्रयोग।

-- ऐसी सूक्ष्म, व्यवस्थित, गुप्त स्वभाव की क्रियाएं, जोकि बिना सैन्यशक्ति के भी सम्पन्न हो जाया करती हैं। इनका तात्कालिक उपचार किसी देश के पास नहीं होता। और आज हमने चीन जैसे कथित शक्तिशाली देश को भी पॉलिटिकल वॉर का आईना दिखा दिया।

भारत के कितने जासूस हांगकांग और ताइवान में कार्यरत हैं? अब तलक ये केवल शंकाएं हुआ करती थीं, जोकि आज स्थापित सत्य हो गईं। भारत की इंटेलिजेंस विंग और साहस-मेधा के संगम जासूसों का कोटि कोटि अभिनंदन किया जाना चाहिए।

सहस्राब्दियों पहले सूर्यवंशियों के ही द्वारा विजित नवद्वीप की भूमि पर पुनः “श्रीराम” का प्रचार-प्रसार कमसकम हम सनातनधर्मियों के लिए तो गर्व की ही बात है!

मेरे शब्दों की दुनिया के दोस्तो, अब वक़्त है कि “श्रीराम” और “ड्रैगन” की आपसी आप्त-शत्रुता की परतें उघाड़ी जाएं, जिन्हें ख़ुद आसमान ने अपने सीने पर स्थान दिया है!

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यों भी, “श्रीराम” के हाथों “ड्रैगन” की पराजय ठीक उसी रोज़ निश्चित हो गई थी, जिस रोज़ चीन ने ड्रैगन को अपना चिह्न चुना था!

वस्तुतः “ड्रैगन” एक काल्पनिक जीव है, दुनिया में इसका अस्तित्व तो दूर, इसका कंकाल तक नहीं मिला है। ऐसे में सहज जिज्ञासा होती है कि इसका अस्तित्व कहाँ है! तो साहिबान, इसका अस्तित्व खगोलीय तारामंडलों से बनने वाली आकृतियों में है, सुदूर उत्तरी आकाश में एक रस्सीनुमा तारामंडल है, जिसमें कि चौदह तारे।

कहा जाता है कि दूसरी शताब्दी में हुए प्रसिद्ध ग्रीक खगोलविद् “टॉलेमी” ने इसे खोजा और इसे “ड्रेको” का नाम दिया। ये नाम एक सर्प-दानव का था, जोकि ग्रीक कथाओं में “हरक्यूलिस” द्वारा पराजित हुआ माना जाता है।

दोनों के आपसी युद्ध में हुई इस जय-पराजय के ही कारण, “ड्रेको” तारामंडल की सर्पिल आकृति के ठीक मस्तक पर सवार एक मानव आकृति के तारामंडल को “हरक्यूलिस” नाम दिया गया है।

विज्ञान के लगभग प्रत्येक विषय की ही भाँति, ये भी कोरा पश्चिमी असत्य है। इस ताज़ातरीन यॉरपियन झूठ की मीमांसा हमारे प्राच्य खगोलीय ग्रंथों में प्राप्त होती है, जहां इस सर्पिल आकृति को “कालिय” तारामंडल और मानव आकृति को “कृष्ण” तारामंडल कहा गया है।

आकृति, नाम व आकाशीय अवस्थिति को ध्यान में रखते हुए, ज़रा श्रीकृष्ण द्वारा “कालिया” नाग-मर्दन की घटना का पुण्य-स्मरण तो कीजिए, आपके मस्तिष्क में भूत, भविष्य व वर्तमान परत दर परत खुलता जाएगा।

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कथा की समस्त कड़ियों को जोड़ने पर लब्बो-लुआब मिलता है कि तक़रीबन पाँच हज़ार वर्ष पहले ही, ये कथा समय की निहानियों द्वारा आसमान के सीने पर कुरेदी जा चुकी थी कि “कालिया” नाग की पराजय “श्रीकृष्ण” के सम्मुख अवश्यभांवी है।

और फिर चार हज़ार बरस की यात्रा कर ये कथा यूनान, मिस्र, रोमां, ग्रीक व आधुनिक यॉरप पहुँची। वहाँ इस बहती मुक्त निष्कलुष हवा के झोंकों को “टॉलेमी” ने बंधक बना लिया।

न केवल बंधक बनाया, बल्कि उनकी पूरी संरचना में आधारभूत बदलाव कर दिए। अब “श्रीकृष्ण” को ग्रीक-शैली का नया नाम “हरक्यूलिस” मिला और “कालिया” को “ड्रेको”।

कालांतर में, ये कथा चीन के हाथ लगी। और खलनायक होने के नायकत्व में आभा खोजने वाली प्रजाति ने एक पराजित राक्षस “ड्रेको” को अपना “ड्रैगन” बना कर अपना लिया।

इन सर्वभक्षी चीनी कीड़ों को लगता था कि ग्रीक में पराजित हुआ “ड्रेको” एशिया का ख़ौफ़ बन जाएगा। किंतु वे अनभिज्ञ थे कि “ड्रेको” को “हरक्यूलिस” ने नहीं, बल्कि “श्रीकृष्ण” ने पराजित किया था।

और आज इतिहास की धुंधली कथा को पुन: प्रकाशित व पुनर्जीवित करने के लिए शस्त्रधारी “श्रीराम” के आगमन का उद्घोष हुआ है। ताइवान न्यूज़ एजेंसी ने लिखा है : “इंडियाज़ राम टेक्स ऑन चायनीज़ ड्रैगन!”

अब वाक़ई मानना पड़ेगा कि इतिहास एक जीवित व्याप्ति है। ये स्वयं को दुहराती है, दुहराने का अवसर देती है। चाहे जितनी धूल इस जीवित मूरत पर लगा दी जाए, समय के झोंके आते हैं और इतिहास की वास्तविकता को विश्वभर के समक्ष प्रकट कर जाते हैं।

एक दौर था, जब “कालिया” नाग को “श्रीकृष्ण” ने कुचला था! आज चीन विरोधी नवद्वीप-भूमि ने “ड्रैगन” को कुचले जाने का पुण्यकार्य को “श्रीराम” के चरणों में समर्पित किया है। इस सम्मान और गर्व के क्षणों में भारतभूमि से ओर से समग्र नवद्वीप को प्रणाम व हार्दिक अभिनंदन।🙏🏻

इति नमस्कारान्ते।


Written By : Yogi Anurag
                     Shatpath (Telegram)

Comments

  1. पुराण और पुरातन इतिहास ही यदि वैश्विक समुदाय के शिक्षा व्यवस्था में स्थापित हो जाए तो अब्राम्ही षड्यंत्र की धज्जियां उड़ जाए! जय श्री राम!

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  2. जय जय श्री राम🙏🙏🙏

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