अयोध्या जी-३


यदि आप हिन्दू हैं तो आपको एक बार "अयोध्या" अवश्य आना चाहिए।

हालाँकि, ये शहर "इन्टरनेट" को मिथकीय बातें बनाने पर मजबूर करता है। मगर ये चाहता है कि इसे एक बार करीब से देखा जाए।

ये शहर दुनियावी आकर्षण का केंद्र है। या यों कहूँ कि ये महज एक शहर नहीं बल्कि षड्यंत्रों को अल्हड बुलावा देता हुआ एक जगमगाता जुगनू है।

ये शहर आपकी तमाम वैचारिक प्यासों को बुझा देगा!

ये शहर दुनिया के कैमरों को एक बेहतरीन मंच मुहैया करवाता है। आपकी राजनीतिक और धार्मिक दिलचस्पियों को अकेला ही बुझा सकने में समर्थ है "अयोध्या"!

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"अयोध्या" को देखकर मेरे जेहन में एक ग़ज़ल तैर जाती है :

"ज़िन्दगी एक है, और तलबग़ार दो / जाँ अकेली मगर, जाँ के हक़दार दो।"

एक ही शहर में कितने गुण-अवगुण हैं!

दो कौमों की नाभि और तीन धर्मों का पुण्यस्थान!

आजकल हो रहे दो सभ्यताओं के टकराव की रणभूमि भी!

और वर्तमान के भारतीय उपमहाद्वीप में शांति स्थापना का एकमात्र जरिया भी!

वर्तमान में तमाम सम्प्रदायों का एक सर्वव्यापी गृह, किन्तु हर एक को लगता है कि ये सिर्फ उनका है, केवल उनका!

प्रत्येक सम्प्रदाय की संस्कृति "अयोध्या" की गलियों में पहुँचते ही इतनी संकरी हो जाती हैं, कि वे किसी दूसरी संस्कृति को प्रवेश की अनुमति नहीं देती।

एक समय था, जब “अयोध्या” को समूचे आर्यवर्त का केंद्र माना जाता था। किन्तु आज ये तथ्य ज्यादा सच है।

वस्तुत: ये शहर तेजी से फैलती मुस्लिम कट्टरता की नाभि है, जो हिन्दू श्रद्धा को खंडित करना चाहती है।

इस्लामिक विद्वान कहते हैं कि ये शहर निराकार ईश्वर और काफिराना बुतपरस्ती के बीच कहीं अग्रिम पंक्ति में स्थित, सभ्यताओं के टकराव की कूटनीतिक रणभूमि है!

शब्दों का चयन देखें ज़रा!

हम उनकी इबादत को "निराकार ईश्वर" की उपासना मानते हैं और वो हमारी श्रद्धा को "काफिराना बुतपरस्ती"!

इन्हीं सब कारण को देखकर, "अयोध्या" जैसे पवित्र शहर को धार्मिक हठधर्मिताओं ने अपने लिए एक सुरक्षित मांद की भांति पाया है।

फिर भी, इतिहास में कभी कोई कूटनीतिक मूल्य स्थापित न कर सका। अन्यथा अब तलक यहाँ एक भव्य हिन्दू मंदिर खड़ा होता।

वस्तुतः, "अयोध्या" इस बात का जीता-जागता उदाहरण है कि किसी एक स्थान पर दो धर्मों की प्रतिस्पर्धा का होना ही, उस स्थान को पवित्रता और लोकप्रियता के शिखर पर बिठा देता है!

अस्तु।


Written By : Yogi Anurag
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