अयोध्या जी-१
भले हिन्दुस्तान की राजधानी "दिल्ली" है, किन्तु हिन्दुओं की राजधानी तो "अयोध्या" ही है।
एक ऐतिहासिक स्थान किन्तु हिन्दुओं का मर्म भी, एक कोमल शहर!
इस पवित्र शहर की कोमलता का परचम कुछ यों है कि सनातन साहित्य ने इस नगरी को एक जीवित स्त्री की भांति माना है।
कभी ये सौन्दर्य का प्रतीक हुआ करती थी। किन्तु आज एक आहत, घायल और कैद राजकुमारी अधिक कुछ भी नहीं!
संस्कृत साहित्य ने इस शब्द "अयोध्या" को "आकारान्त-स्त्रीलिङ्ग" शब्द की भांति प्रयोजा है। यानी कि ऐसा शब्द जो "आ" की ध्वनि से अंत हो और "स्त्रीलिंग" हो।
"अयोध्या" का पूर्ववर्ती मूल शब्द "अयोध्य" है। ये बना है "अ" और "योध्य" शब्दों से।
यहाँ "अ" नकार भाव के लिए है और "योध्य" शब्द "युद्ध" संज्ञा का भाववाचक है। इसका अर्थ होता है :
"वो जिससे युद्ध किया जा सके"।
"अयोध्य" यानी कि वो नगर, जिससे युद्ध करना सम्भव न हो। एक ऐसा नगर जो "अयोध्य" हो, उसका स्त्रीवाचक शब्द "अयोध्या" होगा!
समूचे महाभारत में कई बार कई योद्धाओं के दिग्विजय का उल्लेख है। किन्तु कहीं कोई उल्लेख "अयोध्या" को विजित करने का नहीं है।
और जहाँ युद्ध न होगा, वहाँ किसी का वध भी न होगा। अतः राज्य का नाम हुआ "अवध"।
ऐसी थी, "अवध" राज्य की राजधानी "अयोध्या"!
बहरहाल, बहरकैफ़।
कलिकाल में इस नगरी की तमाम मर्यादाओं को लांघ दिया गया। किन्तु ये नगरी, हम हिन्दुओं के लिए आज भी उतनी ही पवित्र है।
भला, ऐसा क्यों?
चूँकि पवित्रता को केवल आध्यात्मिकता और श्रद्धा की ही आवश्यकता नहीं होती बल्कि औचित्य और परंपरा भी चाहिए!
हिन्दुओं के पास "अयोध्या" का औचित्य बचा है, परंपरा बची है और अथाह श्रद्धा भी। आवश्यकता है तो केवल "आध्यत्मिकता" की स्थापना की!
एक भव्य-मंदिर की स्थापना की!
और प्रभु श्रीराम की कृपा से, वह भी जल्द होगा।
भले हिन्दुस्तान की राजधानी "दिल्ली" है, किन्तु हिन्दुओं की राजधानी तो "अयोध्या" ही है। और एक दिन हम अपनी राजधानी लेकर रहेंगे!
अस्तु।
[ पुनश्च : देवी "अयोध्या" जी को बारम्बार "अयोध्या" पुकारने के लिए क्षमा सहित नमन. 🙏 ]
Written By : Yogi Anurag
Shatpath (Telegram)
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