अयोध्या जी-४


सुना कि, बीते दिनों मोदी जी अयोध्या की सीमाओं को छूकर निकल गए।

वही "अयोध्या" जो एक किताब, नदी और नगरी का सम्पूर्ण संयोजन है। आप दुनिया के किसी शहर का इतिहास उठा कर देख लीजिए, तीनों चीज़ें किसी शहर के पास नहीं होंगी!

यदि उस शहर की किताब होगी तो उसके पास "नदी" न होगी। यदि नदी होगी तो सिर्फ शहर बसा होगा, कोई किताब न होगी उसकी।

और यदि किताब और नदी, दोनों होंगी तो अब वो शहर ख़ाक में मिल गया होगा। उठा कर देखिए इतिहास!

समूचे संसार में, केवल और केवल अयोध्या है जिसका शहर, जिसकी किताब और जिसकी "नदी" अब तलक सुरक्षित है!

इस शहर के हृदयगत वैभव के सम्मुख, इसका दुनियावी बेजोड़ आकर्षण भी फीका है!

संसार के हर हिन्दू के हृदय में "अयोध्या" बनाई गई है। उनमें से हर एक के पास "अयोध्या" को देखने का अपना अलग नजरिया है।

इक्ष्वाकु, मांधाता, दिलीप, सगर, अज, दशरथ और श्रीराम जैसे राजाओं ने इस भूमि में धंसे पत्थरों को तोडा है।

अब्राहमिक धर्मों से इतर कुछ भी अगर है इस संसार में तो उसने इसी स्थान से अपनी शुरुआत की है।

ये कहना भी अतिशियोक्ति न होगी कि राष्ट्र में सौ करोड़ "अयोध्या" हैं। हर हिन्दू का हृदय "अयोध्या" है।

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ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि मोदी जी "अवध" की सीमाओं को छूकर निकल गए हों। बल्कि बीते लोकसभा चुनावों में भी मोदी जी उस जिले में एक सभा की थी।

सभा का स्थान था, जीआईसी मैदान, ज़िला फ़ैज़ाबाद।  उनदिनों, ज़िला अयोध्या का नाम फ़ैज़ाबाद हुआ करता था!

उस सभा के कार्यक्रम में भी, मोदी का रामलला के मंदिर जाना अभिहित न था।

बहरहाल, बहरकैफ़।

मोदी जी का ये तौर तरीक़े बताते हैं कि उन्हें रामलला का भव्य मंदिर ही निहारना है। उन्हें टाट के पैबंदों में बैठे रामलला नहीं सुहाते!

किन्तु जब भी मोदी जी स्वयं को रामलला की भूमि और पाते हैं तो उनके नारों में "जय श्री राम" अवश्य शामिल हो जाता है।

और ये नारा क्यों न शामिल हो? वस्तुतः यही तो व्यापकता है "अयोध्या" की!

"अयोध्या" की व्यापकता कितनी है, भले कोई हिन्दू इस बात से अनिभिज्ञ हो। किन्तु वो हर पल अयोध्या को जीता है।

भला कैसे?

वो ऐसे कि "अयोध्या" एक पवित्र शहर है। वस्तुतः उनके लिए पवित्र जो एक किताब को मानते हैं। एक किताब का शहर है "अयोध्या"।

उस किताब का परिचय "वाल्मीकीय रामायण" नाम से है!

कई मायनों में इस शहर पर कोई किताब नहीं लिखी जा सकती, ये अपने आप में उस किताब का शहर है। इस शहर के पास अपना वृत्तान्त है और अपने पाठक हैं।

प्राच्य सूर्यवंशियों, फिर बौद्धों और जैनियों से होते हुए मुस्लिम आक्रान्ताओं और समाजसुधारकों से लेकर वर्तमान के प्रधानमंत्री मोदी तक, "अयोध्या" अपने इतिहास को दुहराता रहा है ताकि "रामायण" की भविष्योक्ति अक्षुण्ण रहे!

और जब "वाल्मीकीय रामायण" का सरल भावानुवाद अवधी में "रामचरितमानस" के रूप में हुआ तो ये सार्वभौमिक पुस्तक बन गई।

और इसके साथ ही, अयोध्या बनी एक सार्वभौमिक नगरी! हर एक महान राजा में "श्रीराम" को देखा जाने लगा। हर एक विशेष मानुष में अवधी छवि आ गई।

और हर सभ्यता ने अपनी एक अलग नई "अवधपुरी" बना ली। एक ऐसा शहर जो वस्तुत: किसी की जागीर नहीं किन्तु हर एक सपनों में उसका अपना होता है!

इस शहर की सबसे बड़ी त्रासदी और जादू ये है कि इस शहर का सपना पालने वालों में से हर एक, चाहे वो बौद्धों के आचार्य हों या मस्जिद की नींव डालने वाले बाबर हों, आज का सैलानी हो या पत्रकार, जो भी एक विशुद्ध "अयोध्या" को पाने आया है, निराश होता है!

वो निराशा से घिर जाता है, जब देखता है एक शहर को हर पल बदलते हुए, एक साथ फैलते और सिकुड़ते हुए।

अनगिनत बार टूटा और फिर से बनाया गया शहर!

किन्तु फिर भी, ये "अयोध्या" है। सब इसे अपनी संपत्ति बनाना चाहते हैं। सबका ख्वाब है ये, किन्तु हर कोई केवल अपना बनाने की कोशिशों से आया, और नष्ट हो गया।

वस्तुतः इसी कारणवश, मोदी जी "अयोध्या" जाकर, रामलला के सम्मुख अपना अधिकार सिद्ध नहीं करते। वे जानते हैं, "अयोध्या" उनकी नहीं होती जो इसे चुनते हैं, इस तक का सफर तय करते हैं। बल्कि "अयोध्या" उनकी होती है, जिन्हें वो खुद चुनती है।

काश! कि वो दिन जल्द आए, जब "अयोध्या" अपने मंदिर की नींव के लिए प्रधानमंत्री मोदी को चुने!

मन्दिर वहीं बनाएंगे। इति नमस्कारान्ते। 🙏


Written By : Yogi Anurag
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