अयोध्या जी-५


भला भावुक हृदय से कोई क्या लिख सकता है? किन्तु जैसी स्थिति आज निर्मित हुई है, वैसी स्थिति में मौन रह पाना भी कठिन है। 

मौन न रह पाने के कारणों की तह में जाऊं, तो जेरूसलम शहर के विषय में प्रसिद्ध यहूद कहावत याद आती है, जिसे मैंने अयोध्या जी लिए अपने मन में धर लिया था--

“हर हिन्दू के हृदय में दो शहर होते हैं : एक उसका जन्मस्थान और दूजीं उसके आराध्य की जन्मस्थली, अयोध्या जी!”

इसीलिए मैं अक़्सर कहता हूँ, भले हिन्दुस्तान की राजधानी दिल्ली है, किन्तु हिन्दुओं की राजधानी तो अयोध्या जी हैं।

एक ऐतिहासिक स्थान किन्तु हिन्दुओं का मर्म भी, एक कोमल नगरी। इस पवित्र नगरी की कोमलता का परचम कुछ यों है कि समूचा सनातन साहित्य इन्हें एक जीवित स्त्री की भांति मानता है!

इतिहास का एक दौर था, जब अयोध्या जी सौन्दर्य का प्रतीक हुआ करती थीं, हर राजवंश अपनी राजधानी को वैसा बनाना चाहता था। किन्तु आज? आज वे एक आहत, घायल और कैद राजकुमारी अधिक कुछ भी नहीं!

समग्र संस्कृत साहित्य ने “अयोध्या” शब्द को आकारान्त-स्त्रीलिङ्ग शब्द की भांति प्रयोजा है, यानी कि ऐसा शब्द जो “आ” की ध्वनि से अंत हो और स्त्रीलिंग हो।

अयोध्या जी का पूर्ववर्ती मूल शब्द “अयोध्य” है। ये बना है “अ” और “योध्य” शब्दों से। यहाँ “अ” नकार भाव के लिए है और “योध्य” शब्द युद्ध-संज्ञा का भाववाचक है, इसका अर्थ होता है : वो जिससे युद्ध किया जा सके।

अयोध्य यानी कि वो नगर, जिससे युद्ध करना सम्भव न हो। एक नगर जो अयोध्य हो, उसका स्त्रीवाचक शब्द “अयोध्या” होगा। साथ ही, जहाँ युद्ध न होगा, वहाँ किसी का वध भी न होगा, अतः राज्य का नाम अवध हुआ।

समूचे महाभारत में कई बार, कई योद्धाओं के सम्पूर्ण आर्यवर्त दिग्विजय का उल्लेख है। किन्तु कहीं कोई उल्लेख अयोध्या जी को विजित करने का नहीं है।

-- ऐसी थीं, अवध राज्य की राजधानी अयोध्या जी!

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यदि आप हिन्दू हैं तो आपको एक बार अयोध्या जी अवश्य आना चाहिए। जानते हैं क्यों?

चूँकि ये आध्यात्मिकता से भरे आकर्षण की केंद्र हैं। आध्यात्मिकता का ऐसा कौतुक, जो आज से पांच सौ बरस पहले तक, एक जुगनू की तरह जगमगा रहा था।

और इस चमक पर, मध्य एशिया के लुटेरे, तैमूर वंशजों ने ग्रहण लगा दिया!

इस ग्रहण के अन्धकार में, इन्टरनेट को मिथकीय बातें बनाने की पर्याप्त स्वतंत्रताएं मिलीं। भारत के तमाम ख़बरी कैमरों को बेहतरीन मंच मिला। और हिन्दू राष्ट्रवादियों की तमाम वैचारिक प्यासों का आरंभ भी, अयोध्या जी से ही हुआ।

भले अयोध्या जी आपसे दूर रहकर भी आपके जीवन में इतने रस घोल सकती हैं, किन्तु फिर भी, ये चाहती हैं कि इन्हें एक बार करीब से देखा जाए।

सो, यदि आप हिन्दू हैं तो आपको एक बार अयोध्या जी अवश्य आना चाहिए!

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अयोध्या जी को देखकर, मेरे जेहन में एक ग़ज़ल तैर जाती है : “ज़िन्दगी एक है और तलबग़ार दो / जाँ अकेली मगर जाँ के हक़दार दो।”

यानी कि एक ही शहर के कितने गुणधर्म हैं?

वर्तमान में, अयोध्या जी तमाम सम्प्रदायों का एक सर्वव्यापी गृह हैं। किन्तु हर एक को लगता है कि ये सिर्फ उनकी हैं, केवल उनकी।

प्रत्येक सम्प्रदाय की संस्कृति, अयोध्या जी की गलियों में पहुँचते ही इतनी संकरी हो जाती है, कि फिर किसी दूसरी संस्कृति को प्रवेश की अनुमति नहीं देती।

इस्लामिक विद्वान कहते हैं, ये शहर निराकार ईश्वर और काफिराना बुतपरस्ती के बीच कहीं अग्रिम पंक्ति में स्थित, सभ्यताओं के टकराव की कूटनीतिक रणभूमि है।

शब्दों का चयन देखें ज़रा--

हम उनकी इबादत को “निराकार ईश्वर” की उपासना मानते हैं और वो हमारी श्रद्धा को “काफिराना बुतपरस्ती” कहकर अपमानित कहते हैं।

वस्तुत: यही तो समूचा विवाद है। अयोध्या जी बाबरी मस्ज़िद को लेकर तेजी से फैलती मुस्लिम कट्टरता की नाभि हैं। एक ऐसी कट्टरता, जो हिन्दू श्रद्धा को खंडित करना चाहती है।

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एक समय था, जब अयोध्या जी को समूचे आर्यवर्त का केंद्र माना जाता था। किन्तु आज ये तथ्य ज्यादा सच है। आज की अयोध्या जी, यानी कि दो कौमों की नाभि और तीन धर्मों का पुण्यस्थान।

आजकल हो रहे दो सभ्यताओं के टकराव की रणभूमि भी अयोध्या जी हैं। और वर्तमान के भारतीय उपमहाद्वीप में शांति स्थापना का एकमात्र जरिया भी अयोध्या जी ही हैं!

इन्हीं सब कारणों को देखकर, धार्मिक हठधर्मिताओं ने, अयोध्या जी जैसे पवित्र शहर को, अपने लिए एक सुरक्षित मांद की भांति पाया है, एक ऐसी मांद जहाँ इतिहास के लैंपपोस्ट नहीं जलते।

इस राष्ट्र के आधुनिक इतिहास लेखन में, अयोध्या जी की भरपूर उपेक्षा हुई है। उन्हें इतिहास में कोई कूटनीतिक मूल्य न दिया गया। अन्यथा अब तलक यहाँ एक भव्य राममंदिर खड़ा होता।

किन्तु इतनी उपेक्षाओं के पश्चात् भी, अयोध्या जी इस बात का जीता-जागता उदाहरण हैं कि किसी एक स्थान पर दो धर्मों की प्रतिस्पर्धा का होना भी, उस स्थान को पवित्रता और लोकप्रियता के शिखर पर बिठा देता है!

और इस पवित्रता व लोकप्रियता की बड़ी भारी कीमत अयोध्या जी ने चुकाई है। कलिकाल में, म्लेच्छों द्वारा अयोध्या जी की तमाम मर्यादाओं को लांघ दिया गया, एक एक कंकर को उपासकों के रक्त से नहला दिया गया।

किन्तु फिर भी, वे हम हिन्दुओं के लिए उतनी ही पवित्र और पूज्य हैं। चूंकि पवित्रता को केवल आध्यात्मिकता और श्रद्धा की ही आवश्यकता नहीं होती, बल्कि औचित्य और परंपरा भी चाहिए!

हिन्दुओं के पास अयोध्या जी का औचित्य बचा है, परंपरा बची है और अथाह श्रद्धा भी। आवश्यकता है तो केवल “आध्यत्मिकता” की स्थापना की, एक भव्य-मंदिर की स्थापना की।

हम हिन्दू, पांच सौ साल पहले अयोध्या जी में मंदिर निर्माण कर रहे थे। हम हिन्दू, आज पांच सौ साल बाद भी मंदिर निर्माण ही कर रहे हैं। ये कोई समझौता नहीं, बल्कि हमारी पूँजी है, हमारा स्वप्न है।

और प्रभु श्रीराम की कृपा से, ये स्वप्न भी जल्द पूरा होगा। हम इस स्वप्न का भार अपनी भावी पीढ़ियों के नेत्रों पर नहीं डालेंगे। जल्द आएगा सो दिन, जब हम अपनी राजधानी लेकर रहेंगे।

रामलला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे!


Written By : Yogi Anurag
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